बुद्ध वंदना से त्रिरत्न तक: बौद्ध परंपरा के स्तुति गीतों की एक आध्यात्मिक यात्रा
बौद्ध धर्म केवल एक दर्शन नहीं, बल्कि जीने की एक पवित्र शैली है। इसकी वंदनाएँ — चाहे वह त्रिशरण हो, पंचशील, या संघ-वंदना — आत्मा की गहराइयों को छूने वाली प्रार्थनाएँ हैं। इन स्तोत्रों में श्रद्धा, करुणा, और आत्म-शुद्धि का संदेश समाया होता है।
बुद्ध वंदना: बौद्ध साधना की पहली सीढ़ी
“अर्हं सम्मा संबुद्धो…” से आरंभ होने वाली बुद्ध वंदना केवल शब्दों की माला नहीं, बल्कि उस आत्मिक परिवर्तन की उद्घोषणा है जो साधक के अंतःकरण में होता है।
मुख्य वाक्यांश:
- “अर्हंग सम्मा संबुद्धो, भगवा बुद्धंग भगवंतंग अभिवादेमी”
इसका अर्थ है — पूर्ण रूप से जाग्रत, सम्यक सम्बुद्ध भगवान बुद्ध को मैं नमन करता हूँ।
इसके बाद त्रिरत्नों को वंदन किया जाता है:
- बुद्धं नमामी — ज्ञान के प्रतीक
- धम्मं नमामी — सत्य के मार्गदर्शक
- संघं नमामी — समुदाय जो सत्य की ओर ले जाए
त्रिशरण: आत्मसमर्पण की त्रैविधिक प्रतिज्ञा
त्रिशरण वह आधार है जहाँ बौद्ध साधक अपने जीवन को त्रिरत्नों की शरण में अर्पित करता है।
मूल श्लोक:
बुद्धं सरणं गच्छामि
धम्मं सरणं गच्छामि
संघं सरणं गच्छामि
यह केवल तीन बार दोहराई गई प्रतिज्ञा नहीं, बल्कि आत्मा की तिहरी प्रतिज्ञा है — ज्ञान, अनुशासन और समुदाय की।
पंचशील: बौद्ध जीवन के पांच आधार
पांच नैतिक सिद्धांत — जिन्हें “पंचशील” कहा जाता है — साधक को संयम और करुणा का जीवन जीने का संकल्प दिलाते हैं।
पंच प्रतिज्ञाएँ:
- प्राणी हत्या से विराम
- चोरी से विराम
- काम में अनैतिकता से विराम
- असत्य भाषण से विराम
- मादक पदार्थों से विराम
इन प्रतिज्ञाओं को साधक रोज़ की साधना में दोहराता है और इन्हीं के आधार पर वह नैतिक जीवन की दिशा में आगे बढ़ता है।
बुद्ध पूजा गाथा: पुष्प, दीप और धूप के माध्यम से नमन

इस पूजा में प्राकृतिक वस्तुओं — जैसे फूल, सुगंध, दीप — द्वारा भगवान बुद्ध के चरणों में भक्ति अर्पित की जाती है।
प्रमुख पद:
- “पुजेमि बुद्धं कुसुमेन नेन पुञ्ञेन मेत्तेन लभामि मोक्खं”
यानी: इस पुष्प के माध्यम से मैं बुद्ध की पूजा करता हूँ, और इसी पुण्य से मोक्ष की प्राप्ति हो।
यह अनुभूति न केवल काव्यात्मक है, बल्कि बोधिसत्व की भावना को जीवित भी करती है।
बोधी पूजा: जड़ से जागृति तक की स्तुति
बोधि वृक्ष, जिसके नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया, वह केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि जागृति का प्रतीक बन गया।
गाथा अंश:
- “अहं पि ते नमस्सामि, बोधिराजा नमत्थु ते”
अर्थात् — मैं भी आपको नमन करता हूँ, हे बोधिराज!
इस पूजा में वृक्ष को नमन करके हम उसी ज्ञान के स्रोत को प्रणाम करते हैं जिसने संसार को दिशा दी।
भीम स्मरण और भीम स्तुति: आधुनिक बोधिसत्व की जयगाथा

डॉ. भीमराव आंबेडकर को बौद्ध धर्म का पुनरुद्धारक माना जाता है। उनके स्मरण और स्तुति में केवल श्रद्धा ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और आत्मसम्मान का स्वर है।
भीम स्मरण से अंश:
- “भीमरावं सरामि भीमरावं सरामि”
यानी — मैं भीमराव को स्मरण करता हूँ।
भीम स्तुति की झलक:
- “सकल विद्यापति, ज्ञान सत्संगति”
अर्थात् — जिनके पास सम्पूर्ण विद्या और सत्संग की शक्ति थी, ऐसे थे भीमराव।
भीम स्तुति में केवल एक व्यक्ति की वंदना नहीं, बल्कि उस क्रांतिकारी चेतना का वर्णन है जिसने संपूर्ण दलित समाज को बौद्ध धर्म के माध्यम से पुनः आत्मसम्मान दिलाया।
संघ वंदना से धम्मपालन तक: आत्मिक पथ का समर्पित अनुष्ठान
जहाँ बुद्ध वंदना ज्ञान की शुरुआत है, वहीं संघ वंदना उस आध्यात्मिक संगठित शक्ति की स्तुति है जो इस मार्ग पर चलने वालों को दिशा देती है। त्रिरत्नों में अंतिम लेकिन अत्यंत आवश्यक रत्न — संघ — आत्मिक साधना को सामाजिक आधार देता है।
संघ वंदना: समुदाय की शुद्धता का स्तवन
संघ वंदना में, बुद्ध के अनुयायियों के संगठन — “सावक संघ” — की वंदना की जाती है। यह वंदना साधक को याद दिलाती है कि वह अकेला नहीं है; वह एक ऐसे समुदाय का हिस्सा है जो मोक्ष की ओर अग्रसर है।
मुख्य पद:
सुपट्टिपन्नो भगवतो सावकसंघो...
संघं याव जिवितं परियंतं सरणं गच्छामि
इस वंदना में आठ “पुरिस युग” (सामान्य मनुष्यों के बीच उत्कृष्ट व्यक्तित्व) की ओर संकेत है। यह साधक को संघ में आस्था रखने और उसके आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देता है।
त्रिरत्न वंदना: बौद्ध साधना का संपूर्ण स्तवन
त्रिरत्न — बुद्ध, धम्म, संघ — का एकत्रित स्तवन, एक प्रकार की पूर्ण समर्पण प्रतिज्ञा है। यहाँ केवल पूजा नहीं होती, बल्कि आत्मा का समर्पण होता है।
महत्वपूर्ण पद:
- “नत्थिमें सरणं अञ्ञं, बुद्धोमे सरणं वरं”
अर्थात् — मेरे लिए बुद्ध से श्रेष्ठ और कोई शरण नहीं।
इस प्रकार, त्रिरत्न वंदना साधक को तीनों आश्रयों में पूर्ण विश्वास के साथ जीवन जीने का मार्ग देती है।
धम्म वंदना: धर्म की प्रशंसा, अभ्यास और रक्षा
बुद्ध द्वारा प्रतिपादित धम्म केवल उपदेश नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। इसमें करुणा, सत्य, और ध्यान का समावेश होता है।

मुख्य पंक्तियाँ:
- “स्वाक्खातो भगवता धम्मो… एहिपस्सिको”
यानी: यह धर्म बुद्ध द्वारा स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया गया है, जिसे प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं अनुभव कर सकता है।
अंतर्मन में उतरने वाला अंश:
- “नत्थिमे सरणं अञ्ञं, धम्मोमे सरणं वरं”
अर्थात् — मेरे लिए धर्म से श्रेष्ठ कोई और शरण नहीं।
धम्म वंदना साधक को यह प्रेरणा देती है कि वह केवल पठन तक सीमित न रहे, बल्कि धर्म को जीवन में उतारे।
संकल्प गाथा: साधना का उद्देश्य तय करने की प्रतिज्ञा
हर आध्यात्मिक प्रक्रिया को स्थायी रूप देने के लिए एक स्पष्ट संकल्प ज़रूरी होता है। संकल्प गाथा उसी का साक्ष्य है।
मुख्य प्रतिज्ञाएँ:
- बुद्ध, धम्म और संघ को श्रद्धा सहित पूजना
- जन्म, जरा और मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का प्रयास
- संतों की संगति, निब्बाण की प्राप्ति, और सत्कर्म में लीन रहना
यह गाथा साधक को जीवन की क्षणभंगुरता का बोध कराती है और आध्यात्मिक पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देती है।
धम्मपालन गाथा: बुद्ध का सच्चा अनुसरण
धम्मपालन गाथा में स्पष्ट शब्दों में यह बताया गया है कि धर्म का पालन केवल पाठ करने से नहीं, बल्कि आचरण से होता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- “सब्ब पापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसंपदा” — सभी पापों से दूर रहना और शुभ कर्म करना
- “यो च अप्पम्पि सुत्वान धम्मं कायेन पस्सति” — जो थोड़े ज्ञान से भी धर्म को आचरण में लाता है, वही सच्चा अनुयायी है
यहाँ धर्म को केवल शास्त्रों का विषय नहीं, बल्कि जीवनचर्या का मूल बताया गया है।
सब्ब सुख गाथा: सार्वभौमिक कल्याण की प्रार्थना
बौद्ध धर्म व्यक्तिगत मोक्ष के साथ-साथ सर्वप्राणी सुख की बात करता है। सब्ब सुख गाथा इसी भावना का विस्तार है।
प्रमुख भावना:
- “सब्बे सत्ताः सुखी होन्तु, माकञ्चि दुक्खमागमा”
अर्थात् — सभी प्राणी सुखी हों, कोई भी दुःख को प्राप्त न हो।
यह गाथा एक साधक को अपने अहंकार से ऊपर उठकर सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण की भावना में स्थित करती है।
आशीर्वाद गाथा: मंगल और शुभता की कामना
प्रार्थना के अंत में, साधक मंगल की कामना करता है — स्वयं के लिए, समाज के लिए और समस्त प्राणियों के लिए।
मुख्य भाव:
- “भवतु सब्ब मंगलं, रक्खन्तु सब्ब देवता”
यानी: सभी के लिए शुभ हो, और सभी देवता रक्षा करें।
यह आशा व्यक्त की जाती है कि श्रद्धा और भक्ति के बल पर न केवल साधक, बल्कि समस्त संसार सुख और शांति से भर जाए।
चार धम्म प्रतिज्ञाएँ: साधना की अंतिम चार प्रतिज्ञाएँ
- समस्त जीवों को भवसागर से पार करने में सहायता
- स्वयं के दोषों का शमन करना
- अनंत सत्यों की प्राप्ति के लिए स्वयं को समर्पित करना
- बुद्ध के बताए मार्ग को पूरी तरह साधना
निष्कर्ष: वंदना से विमुक्ति तक की साधना
यह सम्पूर्ण लेख केवल श्लोकों और मंत्रों की श्रृंखला नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का मानचित्र है। बुद्ध वंदना से शुरू होकर त्रिरत्न, पंचशील, बोधी पूजा और संघ वंदना तक — यह सब साधक को धीरे-धीरे बौद्ध धर्म के सार तक ले जाता है।

हर मंत्र, हर वंदना एक आंतरिक उद्घोष है — कि हम ज्ञान, सत्य और करुणा की ओर अग्रसर हैं। और यही बौद्ध धर्म का मूल है: मौन नहीं, मगर मौन में भी अर्थ। शब्द नहीं, मगर शब्दों के पार जाने का संकल्प।